शादी की बात सुनते ही सारंग के जेहन में एक वर्षो पुराना वादा याद आ गया और उसका चेहरा पहले से भी ज्यादा मुरझा गया था,उसने जवाब देते हुए कहा था -नहीं,मैनें शादी नहीं की।सारंग के साथ थोड़ी बातचीत करके वे दोनों चले गये थे।सारंग का मन विजेन्द्र सर के पास जाकर उनसे आशीर्वाद लेने का कर रहा था,लेकिन उसकी हीन भावना उसे रोक रही थी,कि क्या जवाब देगा वो विजेन्द्र सर को।उसका दिल अन्दर ही अन्दर रो रहा था और उसे एक ऐसी पीड़ा हो रही थी कि वो इन सब से कहीं दूर चला जाए,जहाँ उससे कोई कुछ ना पूछे और कुछ आँसू गिरा ले।
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अपने अन्दर उठते इस तूफान से लडते हुए सारंग ने विजेन्द्र सर के पास जाने का मन बना ही लिया था।सारंग ने विजेन्द्र सर के पास जाकर उनके पैर छूए थे।विजेन्द्र सर ने उसे पहचान लिया था और मुस्कुराते हुए बोले थे -अरे सारंग तुम,एक नजर उसकी तरफ डालकर फिर से बोले थे,कौन से फील्ड मे सेटल हो चुके हो।सारंग ने कोई जवाब नहीं दिया था बस नजरें झुका ली थी और फिर अगले पल धीरे से बोला था -कहीं सेटल नहीं हो पाया सर असफल रह गया हूँ।
तुम जैसा होनहार दुनिया की भीड़ में कहीं पिछड गया,यकीन नहीं होता,विजेन्द्र सर ने बड़े अफसोस के साथ कहा था।सारंग बस चुप ही रह गया था और हल्की सी मुस्कान के साथ सिर हिलाकर स्वीकृति दी थीं।आँसुओं की कुछ नमी आँखों में उतर आयी थी जिसे उसने बड़ी मुश्किल से रोका था।
रात के दस बज चुके थे,सभी लोग हॅाल मे इकट्ठा हो चुके थे,जहाँ शादी होनी थी।सभी मेहमान और महिलाएं एकसाथ उसी हॅाल मे थे।नवीन के नये दोस्त उसके साथ थे और सारंग कहीं पीछे एक कोने में सबसेअलग बैठा था।स्मृति की नजरें उसे कहीं ढूंढ रही थी,लेकिन वो कहीं नहीं दिख रहा था,वो थोड़ा सा परेशान थी कि सारंग नवीन के साथ नहीं तो फिर कहाँ है??
वर्षों पुराना एक रिश्ता जो दिल के बेहद करीब रहा हो,अगर वो अचानक से ऐसी हालत में सामने आ जाए जैसा हमने सोचा ना हो,तो थोड़ी परेशानी तो होती है ,ये जानने की,कि वो ऐसी हालत में क्यों हैं और जब वो बिना कुछ जवाब दिए नजरों से ओझल हो जाएं तो ये परेशानी ओर भी बढ जाती है।स्मृति के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा था।सारंग के ना दिखने से वो थोड़ी परेशान थी।भीड़ को चीरते हुए यहाँ-वहाँ उसकी नजरें सारंग को तलाश रही थी।अचानक से उसकी नजर उस तरफ गयी जिस कोने में सारंग बैठा था,सारंग को यूँ अकेला बैठा देखा तो स्मृति की बैचेनीं थोड़ी सी ओर बढ गयी और उसका मन आतुर हो उठा कि वो सारंग के पास जाकर उससे पूछे।
थोड़ी देर तक स्मृति वहाँ जाने का मौका तलाशती रही।नवीन और दुल्हन सात फेरो के। लिए मण्डप में। बैठ चुके थे,स्मृति की नजरें सारंग की उदासी को। ताँक रही थी।मौका मिलते ही स्मृति के कदम उस ओर बढ चले थे,वो सारंग के पास पहुँचते ही मुस्कुराकर बोली -हाय यहाँ अकेले क्यों बैठे हो?? सारंग ने स्मृति के आने का ध्यान भी नहीं दिया था इसलिए चौंकता हुआ सा बोला था - अ..........हाँ बस ऐसे ही।सारंग कुर्सी से खड़ा हुआ था और हल्की सी मुस्कान स्मृति की तरफ दी थी।आगे बातचीत बढाने के लिए स्मृति ने ही पूछ लिया था -ओर कौन सी डिस्ट्रिक्ट मे सर्विस दे रहे हो,कैसा चल रहा सबकुछ??
ये एक ऐसा सवाल था जिसने उसे अन्दर तक झकझोर दिया था,उसकी दुखती रग पर स्मृति ने हाथ रख दिया था।उसके चेहरे पर एक असीम दर्द छलक आया,इससे पहले वो कुछ बोल पाता किसी ने स्मृति को पुकारते हुए बुलाया था।सारंग के चेहरे पर उस तकलीफ को स्मृति ने भाँप लिया था लेकिन मजबूरन उसे वहाँ से जाना पड़ा।उसने जाते हुए पीछे सारंग की तरफ पलटकर देखा तो वो हॅाल के। पिछले दरवाजे से बाहर निकल गया था।इस बात से स्मृति ओर ज्यादा परेशान हो गयी थी।
थोड़ी देर बाद वो फिर से सारंग को ढूंढने लगी थी।स्मृति हॅाल के पिछले दरवाजे से बाहर निकलीं जो गार्डन में जाता था उसने नजरें दौडाकर इधर-उधर देखा था।सारंग एक पेड़ के पास वाली बेंच पर बैठा था,गार्डन की लाइट बंद थी,लेकिन फिर भी चाँद की रोशनी में स्मृति ने सारंग को पहचान लिया था।स्मृति ने लाइट अॅान की थी।सारंग ने पीछे पलटकर देखा कि यहाँ कौन आया है? स्मृति को देखकर उसने एक शान्त स्वर में कहा था -इन लाइट्स को बंद कर दो स्मृति,यहाँ चाँद की रोशनी फैली है जिसमें रहने का अधिकार सबका है और इतनी कीमती लाइट्स में रहने का अधिकार किसी -किसी का होता है।स्मृति सारंग की इन उलझी उलझी बातों का अर्थ नहीं समझ पा रही थी।इसलिए लाइट्स बंद करते हुए सारंग की तरफ चल दी थी और जाकर उसी बेंच के दूसरे छोर पर जिसके एक छोर पर सारंग बैठा था।यहाँ क्यों बैठे हो स्मृति ने गम्भीरता से पूछा था।
तुम यहाँ क्यों आयी हो सारंग ने वापस पूछ लिया था।सवाल मैंने किया है सारंग,जवाब पहले तुम दोगे,स्मृति ने कहा था।बस ऐसे ही सारंग ने धीमी आवाज़ में कहा।
अब तुम बताओ यहाँ क्यों आयी हो ?
बस ऐसे ही स्मृति ने भी जवाब देते हुए कहा था।जबकि वे दोनों अच्छे से जानते थे कि ये सब ऐसे ही नहीं हो रहा है,लेकिन फिर भी एक दूसरे को यही जवाब दिया था।स्मृति ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा था -थोड़ी देर पहले मैंने तुमसे कुछ पूछा था कि कौन सी डिस्ट्रिक्ट मे हो आजकल।ये सुनते ही सारंग का चेहरा फिर से तकलीफ से भर गया था और उसने एक लम्बी सांस लेते हुए जवाब दिया था - तुम्हें लगता है मैं आईएएस बनने के बाद अपना वादा भूल गया।लेकिन सच ये है कि मैं उस काबिल ही नहीं बन पाया कि तुम्हारी फैमिली से आकर तुम्हारा हाथ माँगता,अच्छा हुआ जो तुमने शादी कर ली,वरना मेरे इंतजार में ताउम्र कुंवारी बैठी रहती।
सारंग की बातों से स्मृति को बहुत दुख हुआ था,उसका चेहरा दुख और उदासी से मुरझा गया था और वो पूछने लगी थी -तुम आईएएस नहीं बन पाये।सारंग ने स्वीकृति में सिर हिलाया था,उसकी आँखों में नमी छलक आयी थी और वो कुछ नहीं बोल पाया था।
कुछ देर के लिए वे दोनों खामोश हो गये थे,लेकिन चाँद की रोशनी में एक दूसरे को देख पा रहे थे।स्मृति ने ही इस खामोशी को तोड़ा था और बोली थी -अगर मैं कहूं मैंने कभी तुम्हारा इंतजार ही नहीं किया।
ये सुनने के बाद सारंग ने स्मृति की तरफ देखा था,स्मृति भी उसकी तरफ ही देख रही थी।
सारंग बस खामोश रहा था उसने कुछ नहीं पूछा था,लेकिन स्मृति बिन पूछे ही बताने लगी थी -मैंने अपने सपने और प्यार दोनों को खोया है।तुमसे वादा किया था कि मैं तुम्हारा इंतजार करूँगी,लेकिन नहीं कर पायी।तुम्हारे जाने के बाद मैं दिल्ली का एक कोचिंग इंस्टिट्यूट जॅाइन करना चाहती थी,आईएएस की स्टडी स्टार्ट करने के लिए।लेकिन फैमिली कुछ ओर चाहती थी,अपनी राजनीतिक पहचान बनाने के लिए उन्हें इस क्षेत्र के सबसे बड़े विपक्षी से रिश्ता जोडना था ताकि फिर कोई आगे राजनीति में नवीन का रास्ता ना रोक पाये।आज दुनिया जानती है कि नवीन एक बहुत बड़ा नेता और इस क्षेत्र का विधायक है लेकिन ये कोई नहीं जानता कि उसे यहाँ तक पहुंचाने में किसी ने अपने सपनों की अपने प्यार की कुर्बानी दी है।उसके ओहदे की बिल्डिंग के नीचे मेरे सपनों की नींव दबी है।बहुत तकलीफ होती है जब ये ख्याल आता है कि मैं अपने जीवन में अपने सपनों के लिए,अपने प्यार के लिए कुछ भी ना कर पायी,ये कहते हुए स्मृति का गला भर आया था और सारंग की भी आँखें छलक उठी थीऔर दो चार आँसू टपक पडे थे ।खामोशी ने उनके दर्द को आवाज़ दे दी थी।
जिन्दगी की एक हकीकत से उनका सामना हो रहा था,कुछ देर तक दोनों चुप हो गए थे।स्मृति और सारंग की खामोशी में कुछ अनकहे जज्बात घुल गये थे।अपने आपको थोड़ा सम्भालने के बाद स्मृति ने कहा था -आज एहसास हो रहा है कि मैंने एक नहीं बल्कि दो दो सपनों को टूटते देखा है,तुम्हारे लिए जो सपना देखा था,वो भी टूट गया।लेकिन सपनों के टूटने से जिन्दगी नहीं रूकती,देखो मैं आज भी जिन्दा हूँ।सारंग ने स्वीकृति में बस इतना ही कहा था -और मैं भी।
स्मृति ने फिर से सारंग से पूछ लिया था तो फिर आजकल क्या कर रहे हो? एक पल की खामोशी के बाद सारंग ने एक लम्बी सांस खींचते हुए जवाब दिया था -बस इसी सवाल से बचने की कोशिश कर रहा हूँ ,जहाँ भी जाता हूँ ये सवाल पीछा नहीं छोडता,कि तुम क्या कर रहे हो?
इसी सवाल से बचने के लिए रात में नींद की गोलियां खाकर सोता हूँ,सोते वक्त भी ये सवाल पीछा नहीं छोडता और रात में सपनों मे हजार बार खुद से पूछता हूँ कि मैंने अपनी जिन्दगी में क्या किया? इस बात का मेरे पास कोई जवाब नहीं होता,इसलिएअब कभी कभी पीने भी लगा हूँ।सारंग की बातें सुनकर स्मृति को बहुत दुख हुआ था और उसने गम्भीरता से कहा था -शादी क्यों नहीं कर लेते,इस तनाव से बाहर आने के लिए ये जरूरी है।ये सुनकर सारंग थोड़ा मुस्कुराया था और बोला था - शादी,कौन करेगी एक असफल इन्सान से शादी,जिसके पास खुद तो खाने के लिए है नहीं,उसे क्या खाक खिलायेगा।वैसे भी उम्र भी नहीं रही,सिर पर सफ़ेद बाल जीवन और सपनों के ढलने का संकेत दे रहे है।इस बची-खुची जिन्दगी में माँ की थोड़ी सेवा करनी है बस,पिताजी तो सेवा के इंतजार में चल बसे।
सारंग की बातें सुनकर स्मृति को उसकी तकलीफ और हालातों का अंदाजा हो रहा था,वो बिना देर किए बोल उठी थी -तभी तो कह रही हूँ शादी कर लो,बुढापे में माँ की थोड़ी सेवा हो जायेगी।सारंग जिन्दगी धूप नहीं है कि हमेशा चमकती रहेगी।जिन्दगी में कालिक भरे,अंधेरो से भरे बहुत सारे पल आते है,लेकिन जिन्दगी कभी नहीं ठहरती।इस बार सारंग चुप हो गया था और स्मृति उसके जवाब का इंतजार करने लगी थी।
कुछ देर के बाद सारंग ने खामोशी तोडते हुए कहा था -तुम किसी की पत्नी हो,इतनी रात गये,तन्हाई मे किसी दूसरे पुरुष के साथ ठहरना अच्छा नहीं माना जाता,यूँ किसी के दर्द को बाँटना नाजायज़ समझा जाता है,इसलिए यहाँ से जाओ स्मृति।सारंग के हर एक लफ्ज मे छलकते दर्द से स्मृति अनजान नहीं रही थी,अपने प्यार को खोने की तकलीफ सारंग के शब्दों के साथ साथ उसकी आवाज में भी छलक रही थी।स्मृति के पास सारंग की बात का कोई जवाब नहीं था,इसलिए वो खड़ी होकर चलने ही वाली थी,कि उसके कानो में सारंग की आवाज गूँज उठी -
"मैंने रोशनी से अंधेरो में खुद को ढलते हुए देखा है।
हर एहसास को जिन्दगी से फिसलते हुए देखा है।
अपने प्यार को छोडा था जिन सपनों के भरोसे,
उन सपनों को टूटकर बिखरते हुए देखा है।
अच्छा किया मेरा इंतजार ना कर पायी तुम,
इस इंतजार में मैनें खुद को जलते हुए देखा है।"
सारंग की ये लाइन्स सुनने के बाद,स्मृति की भी आँखों में पानी उतर आया था,उसने सारंग से पूछ लिया था -शायरी कब से करने लगे?
सारंग ने मुस्कुराते हुए कहा -जब से जिन्दगी आगे निकल गई और मैं पीछे रह गया।स्मृति के आँसू गालो पर ढलक आये थे और वो बिना एक शब्द बोले वहाँ से चली गई थी।सारंग बस उसे देखता रह गया था।स्मृति से अपने दिल की सारी बातें कहने के बाद उसका दिल हल्का सा हो गया था।
आसमान में चमकते उस मंद से तारे की तरह सारंग अपने सपनों के आसमान में फिर से अपना अस्तित्व ढूंढने लगा था,और इसी जद्दोजहद में वहीं उसी बेंच पर सो गया था।उसे उम्मीद थी कि अगली सुबह जैसे इस अंधकार को मिटा देगी,वैसे ही इस हकीकत को भी मिटा देगी कि वो एक असफल इन्सान है।
उसे उम्मीद थी कि जिन्दगी में फिर से मुस्कुराने के
पल आयेंगे,उम्मीदो का सवेरा होगा और ये जिन्दगी धूप की तरह खिल जाएगी ।
Zla India-आपके दिल की आवाज़ /हमेशा जुड़े रहिए कहानियों और कविताओं के साथ, जिनके नायक होंगें आप /आपके दिल की आवाज़, कुछ एहसास जो छू ले दिल को....