तेज ज्वर से चढते हो तुम

तेज ज्वर से चढते हो तुम


Best romantic feelings
Tej jwar se chadhte ho tum


"क्या कहूं तुमसे,क्या हो तुम?
इस दिल का सुकून ओर तकलीफ दोनों ही तो हो।
तुम्हारी इस जिन्दगी में होने की गर्माहट कभी इस रूह को मजबूर कर देती है मुस्कुराने को।
सच कहूं तो तुम तेज ज्वर के जैसे हो।
जिससे जितना कोशिश करें बाहर आने की,वो गर्माहट और बढती ही है।"




तुम्हारे इस जिन्दगी में होने की गर्माहट भी उस ज्वर जैसी ही है जिसपे ना दवा काम करती है और ना दुआ।
तुमसे जुदा होने की तरकीब तो खुद तुम भी नहीं जानते।
जैसे ये जिस्म सुकून पाता है उस गर्माहट में।
वैसे ही मैं भी तुम्हारे नजदीक होने से सुकून पाती हूँ।
हाँ ये अलग बात है कि तुम उस ज्वर की तरह तकलीफ बहुत देते हो।
वो ज्वर जिन्दगी से निकल नहीं पाता और तुम जिन्दगी में ठहर नहीं पाते।"






"कोई दवा कहाँ असर कर पाती है उस ज्वर में।
और तुम्हारा असर हो तो सबकुछ सिर्फ तुम्हारा होता है।
मैं चाँहू भी तो नहीं निकल पाती तुम्हारे असर से बाहर
सच कहूं तो तुम ओर वो ज्वर बस एक चीज़ में जुदा हो।
वो ज्वर आने के बाद तकलीफ देता है और तुम जाने के बाद।
मेरी ख्वाहिश होती है कि ये तुम्हारा ज्वर कभी ना उतरे इस जिन्दगी से।
पर कहाँ रह पाता है वो ठहरकर मेरे पास।
तुम बस एक ज्वर के जैसे आते हो इस जिन्दगी में।
और फिर ये जिन्दगी बस तलाशती रहती है तुम्हें।
ना दुआएँ काम करती ओर ना दवाएं।

एक छोटा सा वादा

एक छोटा सा वादा


Best heart touching feeling


"Ek chota Sa vada"


"ना हाथ थामा है तुम्हारा,और ना शायद कभी थाम पाऊंगी।
फिर भी तुमसे एक छोटा सा वादा करती हूँ,ये हाथ दुआओं में हमेशा तुम्हारे लिए उठेंगे।
ना साथ माँगा है कभी तुम्हारा और ना शायद कभी माँग पाऊंगी।
पर ये एक छोटा सा वादा है तुमसे,मैं हर पल हर राह में सांये की तरह साथ हूँ।"




"तुम्हारी मुस्कान मेरे चेहरे की भी मुस्कान सी बन चुकी है।
एक छोटा सा वादा तुम्हारी खुशी में मुस्कुराने का और तुम्हारे गमों में आँसू गिराने का।
मेरी मंजिलों तक तुम साथ हो या ना हो।
तुम्हारी मंजिलों तक साथ जाने का एक छोटा सा वादा करती हूँ।"






"तुम्हारे नाम से मुस्कुराने की जिद्द,तुम्हारे लिए इस दिल में अपनापन होते हुए भी आज तुमसे खामोश रह जाने का वादा करती हूँ।
प्यार नहीं है मुझे तुमसे,और शायद ना कभी हो सकेगा।
लो तुम्हारी मुस्कान के लिए आज ये बोल जाने का वादा करती हूँ।
तुम्हारी जिन्दगी में हमराही बहुत है तुम्हारे,
चलो आज मैं फिर से अजनबी हो जाने का वादा करती हूं।
कुछ पल मिले थे जिन्दगी से जो तुम्हारे संग के अपने से।
चलो आज उन पलों के सहारे ही जिन्दगी बीता जाने का वादा करती हूँ।"






"मत समझना कभी कि मुझे तुम्हारी परवाह नहीं है।
परवाह होते हुए भी आज ना जताने का वादा करती हूँ।
अब तो यूँ लगता है कभी,कलम के साथ चित्रकारी में भी उतर आये हो तुम।
चलो आज तुम्हें इस दुनिया की हर कला में ढालने का वादा करती हूँ।
बस मत जाना कभी इन नजरों से दूर क्योंकि तुम्हारी हर एक चीज को बहुत गौर से निहारती हूँ मैं।
चलो आज तुम्हारी खुशी के लिए अपना सबकुछ खो जाने का वादा करती हूँ।"




"डर लगता है मुझे हर वादे के टूट जाने से,
पर अक्सर तुमसे दूर रहने का वादा टूट जाने की दुआँ करती हूँ।
चलो आज बस ये छोटा सा वादा करती हूँ।
जिन्दगी बाकी रही तो फिर से तुम्हें पाने की दुआएँ
और कुछ वादे टूट जाने की दुआएँ करूँगी।




"💕💕 Zla India -आपके दिल की आवाज,जुड़े रहिये कहानियों और कविताओं के साथ जिनके नायक होंगे आप।कुछ एहसास जो छू ले दिल को ........💕 💕

बैंगलोर शहर (मेरी नजर से)

बैंगलोर शहर (मेरी नजर से)


Personal thoughts


अब सिर्फ 46 दिन के लिए मैं इस शहर की मेहमान हूँ।बैंगलोर दुनिया के खूबसूरत शहरों में से एक,इसी शहर में मैं अपनी जिंदगी के 9 बेशकीमती महीने बिताने जा रही हूँ।इसी विषय पर लिखा ये एक छोटा सा लेख,बैंगलोर मेरी नजर से -


37 डिग्री तापमान को चीरते हुए जब दिल्ली से मेरी फ्लाइट निकलीं थी,तो मैंने अन्दाजा भी नहीं लगाया था,कि बादलों को चीरते हुए मैं एक ऐसी जगह जा रही हूँ,जहाँ गर्मी और उमस भरा ये मौसम भी इतना खूबसूरत हो सकता है।
आँखों में उदासी और चेहरे पर चिपके हुए आँसुओं के दाग,जिनको पूरे रास्ते भर भईया से छिपाती रही थी,कैसे रहूँगी वहाँ,घर से दूर पहली बार अकेले,बार-बार बस मम्मी का ख्याल दिल में आता और आँसुओं को आँखों में ही समेटने का एक मुश्किल काम जिसको भईया को पता चलने से पहले ही छिपाना,लेकिन मेरे चेहरे की उदासी नहीं छिपी थी उनसे,उनको वो सब मालूम था जिसे छिपाने के लिए मैं बहुत ऐफर्टस लगा रही थी।घर छोडने की तकलीफ तो थी,पर दिल में सुकून भी कि मैं अपने सपनों की तरफ कदम बढ़ा रही हूँ,कुछ अच्छा करने के लिए जिन्दगी की एक नयी यात्रा पर निकली हूँ।




जैसे ही फ्लाइट से उतरकर इस शहर में पहला कदम रखा,इस शहर की रूमानियत को महसूस किया,शाम की वो ठंडी शाम बारिश के छींटों से जो और ठंडी हो चुकी थी,उसने मुझे मुस्कुराने पर मजबूर कर दिया।और मुझे लगा शायद ये शाम आज मेरे इंतजार में ओर ठंडी हुयी है,ठंड की वजह से मैं थोड़ा सा सिकुड़ गयी,ओर मुस्कुराती रही।लेकिन एकदम से दिल में एक ख्याल आया कल मैं इस शहर में अकेली होऊँगी।कोई अपना नहीं होगा साथ,इन्हीं ख्यालों के साथ मेरे कदम इस शहर की तरफ बढ गये।




आज इस शहर की तरफ देखूँ,तो यूँ लगता है इसने कितना सीखाया है मुझे।शायद वर्षों गुजार देतीं ये जिन्दगी इतना सीखने में।कभी कभी यूँ लगता है मैं वो सब भी देखती हूँ,जो सब नहीं देख पाते।एक शायर की नजर से ये शहर बहुत खूबसूरत है,नारियल के पेड़ जब हवा से लहराते है,तो किसी खामोश एहसास की आवाज मुझे सुनायी देती है,जैसे ये पेड़ कह रहे हो,कि कभी एक। रोज बैठकर हमें भी देखना कभी अल्फाजों से ज्यादा खामोशी बात करती है।
इस शहर की शान्ति देखकर मुझे यूँ लगता है,ये वही जगह है,जिसे मैंने वर्षों से ढूँढा है।
यहाँ की फीकी चाय में प्यार की मिठास को महसूस किया है।इस शहर ने मुझे सीखाया कि प्यार और अपनेपन की कोई भाषा नहीं होती।


घर से दूर अपनों से अलग एक अजनबी शहर को मैंने अपना बनते देखा है।कभी बाल्कनी में बैठकर उस ठंडी और सुकून भरी हवा को महसूस करना,यूँ लगता है कि ये हवा उस हवा से जुदा नहीं है जो मम्मी को छूकर गुजरती होगी।ये आसमान ओर इस पर चमकने वाला चाँद सबकुछ सिर्फ अपने ही है।
ये भारत भूमि यहाँ भी वही है,वहाँ भी वही है।सच कहूं तो इस शहर ने सीखाया है कि मैं सिर्फ एक भारतीय हूँ।उत्तर -भारत,दक्षिण भारत सिर्फ हमारी संकीर्णता को दिखाती है।
ये शहर अब अपना सा लगता है,यहाँ के लोग अपने से लगते है।यहाँ का खानपान,साफ-सफाई जो मेरे से थोड़ा जुदा है,लेकिन फिर भी इसने मुझे एक चीज़ सीखायी कि बाहरी स्वच्छता से ज्यादा आंतरिक स्वच्छता मायने रखती है,जो कि मैं हर एक व्यक्ति के अंदर महसूस करती हूँ।




यहाँ की वो फीकी चाय और नमकीन पानी जिसने जिन्दगी के नये मायने सिखाये।इस चाय की हर एक सिप के साथ मैंने ये महसूस किया है कि जिन्दगी में हमेशा हर चीज़ मीठी नहीं हो सकती,जिन्दगी के तजुरबे हमें सिखाते है,और इस नमकीन पानी में मैंने अपने काले बाल खोये,लेकिन फिर भी इसने मुझे बस इतना सिखाया कि अपना कुछ खोकर भी हमें मुस्कुराना नहीं छोडना चाहिए।




कैनोपी दोस्तों के साथ बीते जिन्दगी के ये 7 महीने कभी पता ही नहीं चले कि साथ चलते चलते यहाँ तक चले आयेंगे एक दिन।अब यूँ लगता है कि इस शहर में हम सब दोस्त सिर्फ 46 दिन के मेहमान है।मुसाफिर की तरह एक दिन सब निकल जायेंगे अपने जुदा रास्तों पर,लेकिन फिर भी कुछ साथ होगा तो साथ बिताया ये पल।कैमरे में कैद वो यादें और वो अपना पन जिसने इस अजनबी शहर को कभी अजनबी नहीं रहने दिया।इस शायर की नजर से हमेशा ही दोस्ती एक सबसे खूबसूरत रिश्ता है और कैनोपी ने महसूस भी कराया।




इस शहर को कभी बड़े गौर से देखूँ तो ये लगता है,शायद ये शहर भी मेरा इंतजार कर रहा था,यहाँ की ठंडी हवा में अब अपनापन लगता है,कि ये ठंडक और सुकून शायद किसी अजनबी शहर में कभी नहीं मिलेगा।


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