तकलीफ

तकलीफ

Best Sentimental Feelings


तकलीफ तुम्हे खोने की नहीं होती,
तकलीफ तो तब होती है,
जब तुम अजनबियों  से  मुस्कुराकर बात करते हो | 
माना कि अब अपने नहीं हो,
पर बैगाने भी क्या ऐसे हुआ जाता है ?



तकलीफ इस बात से नहीं होती कि 
तुम अश्को में आंसू पोछने को साथ नहीं हो 
तकलीफ तो तब होती है,
जब तुम हर किसी से रोने की वजह पूछ जाते हो 


तकलीफ अब तुम्हारे न दिखने से नहीं होती,
तकलीफ तो तब होती है 
जब तुम देखकर भी 
अजनबी की तरह निकल जाते हो 



तकलीफ अब तुम्हारे साथ न होने से नहीं होती 
तकलीफ तो तब होती है ,
जब तुम साथ होकर भी 
बैगाने कहलाते हो 

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कुछ याद

कुछ याद


BEST ROMANTIC FEELINGS




"हर याद कहीं धुंधली सी पड गयी है।
वक्त की परत ने गुजरे हुए कल को ढक सा लिया है।
दूरियों की कालिख ने कुछ मुस्कुराते हुए लम्हे कहीं आगोश में ले लिए 
फिर भी दिल को सुकून है कि तुम मिले तो थे।
वक्त से कुछ माँगा था मैंने कभी तुम्हारे लिए।
तुम्हारी मुस्कान और खुशी।
अब हाथ दुआओं में उठना नहीं चाहते,
क्योंकि इनको आज भी आदत है सबसे पहले तुम्हारा नाम लेने की।
और तुम ये इजाजत मुझे कभी दे नहीं पाये।
काश जिन्दगी कविताओं जितनी आसान होती।
अब भी जब कभी दिल करता है,मैं कागज के पन्नों पर तुम्हें उकेर देती हूँ।
और तुम मेरी एक ओर नज्म में ढल जाते हो।
और मैं एक बार फिर से तुम्हें अपना कह देती हूँ।
तुमने मुझे एक शायर बनाया है, ये सिलसिला अब जाने कहाँ जाकर ठहरेगा।"
वो दोस्त पुराने नहीं आते,मैं यादों का किस्सा खोलूँ,तो कुछ दोस्त बहुत याद आते है।

कैद जिन्दगीयाँ

कैद जिन्दगीयाँ
Best Poems


"बंद कमरे की चारदीवारी में,आज कैद है कुछ जिन्दगीयाँ मोबाइल में।
कभी निकलकर देखो इस खुले आसमान के नीचे।
कुछ गम यूँ ही कहीं खो से जाते है।"


"आधुनिकता की इस दौड़ में आगे बढने की चाह में कहीं खुद को ही खो रहे है।
ना जाने कितने सवाल उभर आते है,
जब कभी इस खुले आसमान के नीचे गहरे सन्नाटे में अपने वजूद को तलाशते है।
ये जिन्दगी किस तरफ जा रही है?
खुद से कहीं दूर इस दुनिया का सबकुछ हासिल करने का भ्रम।
भ्रम की दुनिया सिर्फ उलझने पैदा करती है और एक खोखली खुशी।"


"अपने अपनों से कहीं दूर आज सोशल मीडिया पर लाखों अपने है।
पर आँसू जब पोंछने हो,तो कोई हाथ नहीं मिल पाता है आँसू पोंछने वाला।
हजार अपने होते हुए भी आज इन्सान अकेला है,ये कैसी दुनिया है?"




"बंद कमरों में आज कही कैद हो चुकी है ये जिन्दगी मोबाइल में।
कहाँ मिल पायेगी अब वो खुली हवा, जो अक्सर बाल बिखेर दिया करती थी।
हवा तो अब भी होती है पर वो एसी की हवा है,जिसमें सुकून से ज्यादा घुटन है।
बंद कमरों की चारदीवारी में हमने अपने वजूद को खोया है।
आज एक अरसे बाद खुले आसमान के नीचे आये तो ये वजूद फिर से सवाल करने लगा।






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