मेरी आँखे अक़्सर ख़्वाब देखा करती थी।
ख्वाबों में खुद को कहीं खोते हुये देखना।
कभी किसी बेवजह की बातों पर आँसू भी गिरा देना।
जो कभी हकीकत हो ही नही सकते थे।
जो सिर्फ आँसुओ की वजहें थे,
जिन्होंने बस रोना सिखाया था।
मुस्कुराहटें तो तुम्हारे करीब होके पहली बार देखी थी,
कयोंकि तुम हकीकत हो,
जीना तुमसे सीखा है, मुस्कुराहटों की वजह तुम हो।
पलको पर जमे अश्कों के निशान तुमने हटाये थे।
जीने की वजहें तुमने दी थी।
बेवजह किसी के लिए मुस्कुरा कर चुप रह जाना तुमने सिखाया था।
कयोंकि तुम हकीकत हो,
जानें किस लम्हे में खता हुयीं कि
अश्कों के निशान पलकों पर वापस लौटने लगे है,
खामोशियों के बीच कुछ बिखर रहा है हम दोनो के दरमियाँ।
कल्पनाओं के भ्रम में हकीकत के विश्वास
या दुरियों की तपिश में नज़दीकियों के एहसास।
तुम्हें सबसे ज़्यादा समझने के वादे,
तुम्हारे चेहरे की मुस्कान की खुशी,
या वो अपनापन जो गैर होके भी तुम्हे अपना बनाता था।
तुम हकीकत थे, पर शायद ख्वाबों की दुनियां में जाना चाहते हो।
और ये ख़्वाबों की दुनियां मेरी होके भी मेरी नही होती,
इसमे होते है कुछ आँसू, अकेलापन और बस उसके होने का एहसास।
उसको याद करके अश्क़ों के समंदर में खामोशी का साथ।
ना अल्फ़ाज़ होते है ना अपनापन,
बस कुछ होता है तो ज़िंदा रहने की कुछ वजह,
जो अपनी होके भी अपनी नही होती।
जो कभी हकीकत नही हो सकती ।
जिनकी यादे बस दिल को तकलीफ देती है।
शायद जिंदगी के बिखरे एहसास कल के कुछ किस्से,
आज को कालिख़ से मिटाने लगें है।
तुमको अच्छा लगने लगा है अब अजनबी बनना।
किसी गैर की तरह मुस्कुराहटो के पीछे छिपे आँशुओ को अनदेखा करना।
कयोंकि तुम अब हकीकत बनना ही नही चाहते,
क्योंकि तुमने खुद को ख्वाबों की दुनिया से तोल लिया है।
तुम ख्वाब थे ही नहीं कभी।
तुम बस हकीकत थे, तुम बस हकीक़त थे, तुम बस हकीकत हो।
तुम बस हकीकत हो।
और तुम बस हकीकत ही रहोगे,
चाहे मेरी पलकें तुम्हे याद करके अश्क भी गिराती रहे।