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इन्सानियत कहाँ खो रही है
"बाजारो की भीड़ में इन्सानो को पहचानूँ कैसे??
काम,लोभ में फंसे इन बेअदब में भावनाएं जानूँ कैसे??
कुछ तृष्णा,वासना के बदले भावनाएं बिकती है मोल।
आज इन भूखे शैतानों ने इन्सासियत को लिया है तोल।"
"चारों तरफ ढूंढू तो सच्चाई है बस कुछ बाशिंदों में,
मजबूरियों में जकडें है जो इन शैतानों के फंदों में।
आंच नहीं है झूठ को,सच जलकर होता राख।
इन लोगों के पास बची है बस आत्मा की खाक।"
"सच्चा बंदा है अभागा,गैर बिरादरी इन लोगों के बीच,
सारे दर्द तकलीफ सहता,रहने को इनके करीब।
होता है व्यापार यहाँ पर परमात्मा के नाम पर,
गारंटी लेते है एक अर्जी पूरी करने की,
सट्टे लगते उसके काम पर।"
"परमात्मा भी आज गली चौराहों पर बिकता है,
जिसकी जितनी बड़ी हैसियत,उतना बड़ा ही ईश्वर मिलता है।
हाथ जोडते जो सबसे ज्यादा,वो ही लूटते सबसे ज्यादा
चुनाव समय में जो हजारों वादे कर जाते,
पूरा करने के वक्त वो नज़र नहीं आते।"
"पालनकर्ता ही आज सबको खसोटता,
हे ईश्वर तू क्यूँ नहीं यहाँ लौटता।
एक अस्मत लूटी नारी की चप्पलें,
दरबारों में जाते -जाते घिस जाती।
न्याय मिलता जब तक उसको ,तेरे पास चली आती।
एक उम्र गुजर जाती है यहाँ फाइलें खुलवाने में।
दूजा जन्म लेना पडता है यहाँ न्याय पाने में।
एक भूखा बच्चा यहाँ सडकों पर मर जाता ,
और एक हत्यारा यहाँ जेल में सुकून से खाता ।
3 comments
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ReplyThank you sir
Replyso true!!!!!
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