जिन्दगी धूप तो नहीं (स्टोरी -पार्ट-1)

प्रत्येक वर्ष भारत में हजारों लाखों युवा सिविल सर्विसेज की तैयारी करते है,उनमें से कुछ जो सफल हो जाते हैं।उनको दुनिया जानती है,लेकिन उनमें से कुछ जो बहुत मेहनत करने के बाद भी किन्हीं वजहों से सफल नहीं हो पाते,वो क्या करते अपनी जिंदगी मे कोई उनके बारे में नहीं जानना चाहता।ऐसी ही एक कहानी को बयाँ करती ये कहानी जिन्दगी धूप तो नही -
सफ़र संघर्ष का




"जो सोचा था,वो हुआ नहीं।जो होना था वो सोचा नही।
अजीब इम्तिहान है जिन्दगी राहे चलते रहे ताउम्रओर आखिर में पता चला कि इस राह पर तो मेरी मंजिल नहीं।कुछ खेल यूँ खेलती रही जिन्दगी कि साथ कोई हमसफर नही ओर मुश्किलों ने हमेशा हमराही बनकर
साथ निभाया।किसी को तोड़ देते है कोई गैर,कोई टूट जाता है अपने अपनो के हाथों।मैं आज टूटा हूँ इस कदर कि खुद के सिवा कोई गुनाहगार भी नहीं।जाने क्यूँ पहुँच
गया हूँ आज उस राह पर जहाँ पीछे जाने का वक्त ना रहा और आगे की राह नहीं।

अपनी डायरी में ये कुछ पंक्तिया लिखने के बाद सारंग ने डायरी को मेज के दराज में रखा और फिर और फिर एक नज़र घडी की तरफ डाली| सुबह के छ बजे हुए थे|सारंग इस कमरे में रहता है ,जहाँ पिछले आठ सालो से उसकी जिन्दगी सिमटी हुयी है| इसी कमरे में  एक बड़ी सी अलमारी जिसमे तीन खानों में बहुत सारी किताबे रखी हुयी है |कमरे के बीच में एक मेज ओर दो कुर्सियां ओर दीवार के पास एक सिंगल बेड।दरवाजे की पास वाली दीवार के पास एक छोटा सा गैस ओर कुछ खाने पीने की चीजें ।बेड के पास की ही खूंटी पर सारंग के। दो -तीन जोड़ी पेन्ट शर्ट और उसके नीचे ही एक बक्सा जिस पर घड़ी रखी हुई थी,जो सुबह छ: का समय दिखा। रही थी।






आज की। सुबह कुछ ज्यादा ही बेरंग थी,यूँ तो पिछले दो महीनों से कोई भी सुबह अच्छी नहीं होती,लेकिन आज कुछ ज्यादा ही बेरंग थी जैसे सुबह ओर शाम में कोई फर्क ही ना रहा हो।आज सुबह सुबह दिल कर गया डायरी उठाकर उसमे कुछ लिखने का,वो भी जिन्दगी की हकीकत।आज सारंग के कॅालेज के दोस्त नवीन की शादी है,जिसमें उसे जाना है वो भी दूसरे शहर में।डायरी को दराज मे रखने के बाद सारंग कुर्सी से खडा हुआ ओर बक्से के पास पहुँचा।घड़ी उठाने के बाद बक्सा खोला।उसका मुरझाया हुआ चेहरा और भी मुरझा गया।






सारंग की उम्र लगभग 32 साल ,सिर पर एक दो सफ़ेद बाल आ चुके थे।पिछले 2-3 दिन से सेविंग भी नहीं की थी,जिससे चेहरे की रौनक कहीं गायब सी थी।बक्से मे सारंग के दो जोड़ी नयी पेन्ट शर्ट ओर कुछ जरूरी सामान था दोनो जोड़ी कपड़ों को बाहर निकाल कर देखा ओर चेहरे की रंगत पहले से भी फीकी पड गयी।जेहन मे कुछ पुरानी बातें घूमने लगाी-नवीन देख तुम्हारी शादी में मैं कोट पहनूँगा वो भी अपनी सैलरी से खरीदकर।यार मम्मी -पापा के पैसों से ज्यादा महंगे कपड़े खरीदने का दिल नही करता।मेरी पढाई का खर्च भी बड़ी मुश्किल से उठा पाते हैं।सारंग तुझे देखकर मुझे ऐसा लगता है कि आज के जमाने में भी राम जैसे बेटे मौजूद है।अरे भाई! ये तो अपनी खेलने खाने की उम्र है।अगर अभी इतना सोचेंगे तो आगे क्या होगा?तेरी ये नयी शर्ट देखकर तो मुझे हँसीं रही है यार,ऐसी शर्ट तो मैंने बचपन मे भी नहीं पहनी।बचपन से ही अपनी पसंद के कपड़े पहनता हूँ ओर तू मम्मी पापा की पसंद के।




सारंग एक पल के लिए चुप हो गया था और फिर गम्भीर स्वर से बोला था -मेरी इतनी हैसियत नहीं हैं नवीन ।
यार तू ऐसी बातें मत किया कर,ये कहते हुए नवीन ने सारंग को गले से लगा लिया था।नवीन ने शान्त स्वर में कहा था -हर बार इतना सीरियस मत हुआ कर यार,तू मेरा बेस्ट फ्रेंड है।ओर ये भी एक इत्तेफाक ही है कि तू कॅालेज का सबसे शरीफ स्टूडेंट ओर मैं सबसे शैतान,लेकिन फिर भी हम दोस्त है ओर एक दूसरे को बहुत करीब से जानते हैं।ये हैसियत वैसियत की बाते मत लाया कर बीच में।
अगले दिन नवीन सारंग के लिए एक सुन्दर और महंगी शर्ट लाया था और उसे सारंग के हाथ में थमाते हुए कहा था -ये लो तुम्हारा गिफ्ट।इसमें क्या है नवीन?सारंग ने वापस पूछ लिया था।अरे कुछ नहीं,इस बार तुम्हें बर्थ डे पर गिफ्ट नहीं दे पाया था,बस वही है खोलकर देखो।सारंग ने उसे खोलकर देखा तो उसमें एक बहुत अच्छी शर्ट थी।उसे देखने के बाद सारंग ने कहा -नही मैं इसे नहीं ले सकता,मेरे लिए वही मम्मी पापा की पसंद की शर्ट ही अच्छी है जिसे पहनकर मुझे गर्व होता है कि ये मेरे पापा की मेहनत की कमाई से खरीदी हुई है।


ये सब सुनने के बाद कुछ परो तक चुप रहने के बाद नवीन बोला था -सारंग मैं तुम पर कोई एहसान नहीं कर रहा यार,तू बीच में अपने सेल्फ रस्पेक्ट को मत लाया कर,मैं तुम्हारा दोस्त हूँ और तुम्हें बर्थ डे गिफ्ट दे रहा बस,इतना समझो ओर ले लो।
सारंग मना करता रहा,लेकिन नवीन ने उसे वो शर्ट जबरदस्ती दे दी थी।सारंग एक पल के लिए सन्न रह गया,इन सात साल पुरानी स्मृतियो ने उसके मन के साथ साथ उसकी आँखों को भी भीगा दिया था।उसके हाथों में नवीन की दी हुई वही शर्ट थी और आँखों में वक्त ओर हालातो के दिये हुए आँसू,जो टप-टप कर जमीन पर गिर गये थे।स्मृतियो के वसंत को पार करते हुए सारंग हकीकत की पतझड़ में पहुँच चुका था।आज उसे नवीन की शादी में जाना था,उसने आँसू पोंछते हुए वो शर्ट ओर पेन्ट उठायी ओर बक्से को बंद कर दिया।
तैयार होने के बाद सारंग बस पकड़ते हुए नवीन के शहर। की तरफ चल दिया था,खिड़की के। पास वाली सीट पर बैठे सारंग के चेहरे पर हवा के झोंके टकरा रहे थे और अतीत की यादों की एक एक परत खुलती जा रही थी ..................Be continue in 2 part



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Zla India-आपके दिल की आवाज़ /हमेशा जुड़े रहिए कहानियों और कविताओं के साथ,जिनके नायक होंगें आप /आपके दिल की आवाज़, कुछ एहसास जो छू ले दिल को...







































































































































Alfaz aur khamoshi ke beech bikhre ehsaso ko kalambadh krne ki ek choti si koshish krti hun,Taki kisi gamgeen chehre pe muskan de skun.Ek shayar ki nazar se aapke dil ki aawaz,aur zindgi se smete huye ko aap tak pahuchane ka junun bs yahi jo aksar mujhe likhne ke liye majboor kr deta h.....

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