जिंदगी धूप तो नहीं (स्टोरी पार्ट-3)


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वॉचमैन ने सारंग की बात मानने से इनकार करते हुए कह दिया था कि वो उसे अंदर जाने की इजाजत नहीं देगा इसलिए वो बाहर के दरवाजे के पास वाली बेंच पर बैठकर इंतज़ार करे,जब तक नवीन चौधरी बिजी हैं|बाद में उनकी इजाजत से ही अंदर आने का मौका दिया जाएगा|सारंग बोझिल से कदमों से बाहर की तरफ चल दिया था|उसके चेहरे पर मायूसी और होठों पर असीम ख़ामोशी छा गयी थी|सारंग बाहर आकर दरवाजे के पास पड़ी बेंच पर बैठ गया था|शादी के लिए एक के बाद एक गाड़ियाँ आकर रुक रही थी और बहुत सारे लोग सारंग के पास से होकर अंदर जा रहे थे,लेकिन सारंग चुपचाप बाहर बैठा हुआ था,दिल में कुछ जज़्बात उमड़ रहे थे लेकिन ना पास में पेन था,ना डायरी थी इसलिए होठों ही होठों में बुदबुदाया था-

सफर संघर्ष का







"मैनें अक्सर बदलते हालातों को देखा है,हजार बार खुद को धुल में सिमटते हुए देखा है|
 कदम जितनी बार भी बढ़ाए आगे बढ़ने को,हर कदम को पीछे घिसटते हुए देखा है|
 हर सुबह शुरू होती थी जिसके साथ,हर शाम जो साथ होता था,
 आज उसी दोस्त के इंतज़ार में खुद को जलते हुए देखा है|
 क्यूँ करवट लेती है किस्मत इतना,क्या खता हुई थी मुझसे,
 एक राह से आगे बढ़कर उसे आसमान छूते हुए और खुद को धुल में मिलते हुए देखा है।
 ना शिकवा है खुदा से,ना कुछ पाने की चाह है,
बस एक जिद है अपनी जिससे मैंने खुद को हर बार गिरकर सम्भलते हुए देखा है|"






                                   इन लाइनों को होठों ही होठों में बोलते हुए सारंग मन ही मन सोचने लगा था,हर बार ठोकर लगने के बाद मैं खुद को संभाल लेता हूँ|सोचा भी नहीं था कि मेरे अंदर अब भी इतनी हिम्मत होगी कि मैं सारी बातों को भूलकर यहाँ नवीन की शादी में आ जाऊंगा|बचपन से ही मुश्किलों से सामना होता आया है और आगे भी शायद जीवनभर ये ही साथ निभाएं|कितने सपने लेकर गया था यहाँ से लेकिन सब चकनाचूर हो गये...यही सोचते-सोचते सारंग के ज़ेहन में कुछ पुरानी यादें ताज़ा हो गई...कॉलेज ख़त्म होते ही सब लोग अपनी-अपनी मंजिल की ओर निकल पड़े थे|


                 अपनी आँखों में आईएएस बनने का सपना संजोये सारंग घर से सिर्फ दो-चार जोड़ी कपडे और कुछ खाने-पीने का सामान लेकर निकला था|माता-पिता की ऐसी हालत नहीं थी कि वें सारंग का शहर में रहने का खर्चा उठा पाए ऊपर से सारंग की बड़ी बहन की शादी भी करनी थी लेकिन बड़ी उम्मीदों के साथ उन्होंने सारंग को शहर भेजा था|वहां जाकर उसने वो कमरा किराये पर लिया जिसमें वो अब रहता है|उसी कमरे की चारदीवारी में कैद है सारंग की जिंदगी|अपना खर्च उठाने के लिए उसने कुछ बच्चों को ट्यूशन पढाया और बाकि बचे पूरे समय में जी जान से पढाई की|उस कमरे की हर एक चीज गवाह है कि उन्होंने सारंग की जी-तोड़ मेहनत को देखा है|सारंग अट्ठारह-अट्ठारह घंटे पढाई करता था लेकिन कई बार मेहनत के साथ किस्मत साथ नहीं दे पाती|सारंग ने भी उसी तकलीफ को जिया|तीन बार आईएएस का एग्जाम दिया|पहले प्रयास में प्री-एग्जाम क्लियर किया,दूसरे प्रयास में प्री और मेन दोनों एग्जाम क्लियर किये,लेकिन इंटरव्यू क्लियर ना कर पाया और किस्मत का एक नया खेल ये कि अब की बार सारंग प्री-एग्जाम भी क्लियर नहीं कर पाया था,ऊपर से ये उसका आखिरी मौका था,अब आगे उसकी उम्र नहीं रही थी एग्जाम देने की|


                        सारंग के पास कुछ नहीं था,उसके हाथ खाली के खाली रह गये थे|पिछले दो महीनों से जब से रिजल्ट निकला था,असफलता और निराशा की बैचेनी उसे घेरे थी|वक्त-बेवक्त सारंग को अकेला देखते ही तोड़ देती थी|एक जीनियस असफलता के गर्त में चला गया था|बाहर बेंच बैठा सारंग इन्हीं कुछ ख्यालों के साथ अपने पास से गुजरते हर शख्स को देख रहा था|उसकी नजरें शून्य में देख रही थी कि तभी वहाँ एक गाड़ी आकर रुकी|उसमें से हरी और गुलाबी साडी पहने स्मृति उतरकर जैसे ही अंदर की तरफ चली,उसकी नजरें बेंच बैठे सारंग पर पड़ी|सारंग ने भी उसे देख लिया था|कुछ क्षणों के लिए एक दूसरे को देखते ही रह गये क्योंकि अब दोनों हो बहुत बदले-बदले से थे|स्मृति को तो बिलकुल उम्मीद नहीं थी कि वो सारंग को इस हालत में देखेगी|सारंग के चेहरे पर उदासियों ने डेरा डाला हुआ था,दाढ़ी भी थोड़ी सी बढ़ी थी,सिर पर एक-दो सफ़ेद बाल भी दिख रहे थे,कपडे भी नये नहीं थे...और स्मृति की तो शादी भी हो चुकी थी इसलिए सारंग के लिए भी स्मृति का ये रूप एकदम नया था|आखिरी बार उसने उसे सलवार-कमीज में फेयरवेल पार्टी में देखा था और अब वो महँगी साडी में और ऊँची हिल्स पहने थी|





                     सारंग को देखकर स्मृति मुस्कुराते हुए बोली थी-'सारंग,तुम!!यहाँ क्यों बैठे हो?' 'हाँ,वो मैं मैरिज इन्विटेशन कार्ड लाना भूल गया था|' सारंग ने भी एक हल्की सी मुस्कान के साथ जवाब दिया|'कोई बात नहीं,चलो फिर अंदर..'ये कहते हुए स्मृति ने अंदर की तरफ इशारा किया था|सारंग बेंच से खड़ा हुआ था और स्मृति के साथ अंदर की तरफ चला था|उसके कदम अब पहले से भी बोझिल हो गए थे और जेहन में कुछ ख्याल उमड़ रहे थे|स्मृति को भी अंदर से थोड़ी बैचेनी हो रही थी कि सारंग ऐसी हालत में क्यूं है?
 
                        उन दोनों ने एक-दूसरे से कुछ नहीं कहा था,लेकिन ख़ामोशी से ही कुछ बातें हो रही थी|वो फेयरवेल पार्टी में एक-दूसरे से किया वादा याद आ रहा था और दोनों एक-दूसरे को हकीकत की एक दास्तान समझा रहे थे|ज़ेहन में कुछ सवाल उठ रहे थे जिन्हें एक-दूसरे से जानना चाह रहे थे लेकिन ना वक्त था और ना हालात| स्मृति के साथ सारंग एक बहुत बड़े हॉल में पहुँच चुका था,जहां बहुत सारे मेहमान पहले से मौजूद थे|स्मृति उसे वहाँ छोडकर चली गयी थी|


                         सारंग भी वहाँ एक कुर्सी पर बैठ गया था|दोपहर का लंच करने के बाद शाम होने को आयी थी लेकिन नवीन सारंग को कहीं दिखाई नहीं दिया था|शाम होते-होते शादी की तैयारियां बड़े जोर- शोर से चलने लगी थी|स्मृति ने नवीन को सारंग के बारे में बताया था|शाम को नवीन हॉल में सारे मेहमानों के बीच पहुंचा|सारंग के साथ नवीन का हाय-हेलो हुआ और नवीन ने सारंग को गले लगाते हुए पूछा-'और क्या रहा तेरे एग्जाम का?' सारंग ने मना करते हुए कहा-'नहीं हुआ|' नवीन थोडा हँसते हुए बोला था-'यार तुझे हजार बार समझाया कि पढने-लिखने से कुछ नहीं होने वाला|मुझे देख क्या बिंदास लाइफ जी रहा हूँ|जूते भी नौकर उठाकर रखता है|सारंग को नवीन की ये बात बिलकुल भी अच्छी नहीं लगी थी|वो मुस्कुराया तो था लेकिन उसे अच्छा नहीं जग रहा था|दुखी और निराश ह्रदय पर एक सामान्य सी बात भी गहरा घाव कर देती है| सारंग के अंदर की बैचेनी और तकलीफ को नवीन भांप ही नहीं पाया था|एक-दूजे के बहुत करीब रह चुके दोस्तों को इन आठ सालों की दूरी ने बहुत दूर कर दिया था| उस पर दोनों के हालात भी बिलकुल जुदा थे|नवीन मेहनती ना होते हुए भी इतने ऊँचे औहदे पर पहुँच गया था कि पद का थोडा गुरूर उसके अन्दर आ गया था और सारंग लगनशील और मेहनती होते हुए भी सफलता तक नहीं पहुँच पाया था|सारंग नवीन के अंदर उस गर्मजोशी और दोस्ती के अहसास को ढूँढता रह गया था|



                        दोपहर से इंतज़ार करते हुए शाम को नवीन से मुलाक़ात हुई थी और ये मुलाकात भी बहुत औपचारिक थी|सारंग से मिलने के बाद नवीन और मेहमानों से मिलने के लिए उनके पास पहुँच गया था|हर आदमी नवीन की तारीफ़ कर रहा था कि उसने अपनी मेहनत के बलबूते इतना बड़ा मुकाम हासिल किया है| नवीन की शादी में विजेंद्र सर भी आये थे|नवीन ने उनके पैर छूए थे तो विजेंद्र सर ने उसे गले लगाते हुए मुस्कुराकर कहा था-'आज हमें तुम पर गर्व है|तुमने हमारा नाम रोशन किया है|' सारंग मेहमानों के पास एक कोने में बैठा सबकुछ ख़ामोशी से देख रहा था और हर आदमी की कही बातों को सुन रहा था|

                      तभी उसके पास कॉलेज के दो दोस्त आये और बड़ी गर्मजोशी से आकर बोले-'अरे!सारंग यार तू!!क्या हाल बना रखा है?कहाँ है आजकल?तेरी तो कोई खबर ही नहीं|' सारंग उनकी बातें सुनकर एकदम चौंक सा गया था,जैसे किसी बात से उसका ध्यान भंग हो गया हो|सारंग मुस्कुराते हुए कुर्सी से खड़ा हुआ था और उन दोनों से गले मिला था|उन्होंने सारंग से पूछा कि वो आजकल कहाँ जॉब कर रहा है?सारंग के पास कोई जवाब नहीं था|उसने बस इतना ही कहा था-आईएएस का एग्जाम दिया था लेकिन क्लियर नहीं हो पाया|ये सुनकर वे दोनों कहने लगे थे-'यार,तूने रास्ता ही गलत चुना,हम दोनों को देख इंजीनियरिंग डिप्लोमा करके जॉबी कर रहे हैं|अच्छे से लाइफ गुजर रही है और अच्छी अपनी फैमिली है|' सारंग बस चुप हो गया था|वे फिर से पूछने लगे थे-'अच्छा,शादी कब की?' शादी की बात सुनते ही सारंग के ज़ेहन में वर्षों पुराना किया हुआ एक वादा उभर आया और उसका चेहरा पहले से भी ज्यादा मुरझा गया|...... To be continue in part 4.....


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Zla India-आपके दिल की आवाज़ /हमेशा जुड़े रहिए कहानियों और कविताओं के साथ, जिनके नायक होंगें आप /आपके दिल की आवाज़, कुछ एहसास जो छू ले दिल को....


Alfaz aur khamoshi ke beech bikhre ehsaso ko kalambadh krne ki ek choti si koshish krti hun,Taki kisi gamgeen chehre pe muskan de skun.Ek shayar ki nazar se aapke dil ki aawaz,aur zindgi se smete huye ko aap tak pahuchane ka junun bs yahi jo aksar mujhe likhne ke liye majboor kr deta h.....

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