तुम्हारी शून्यता

 तुम्हारी शून्यता।


जीवन किसी बहती धारा के जैसे है, जो अविरल धारा में बहता रहता है। कुछ अवरोध उसको भले रोकना चाहें, पर रोक नहीं पाते। ये धारा किसी भी ओर बहे, अपना मार्ग बना ही लेती है। तुम उस ओर बहते रहे और मैं तुम्हें तलाशते हुए तुम्हारी तरफ बहती रही।

जब दो विपरीत धाराएं एकसाथ मिलती है, तो चक्रवात का निर्माण होता है। और जब दो समान धाराएं एकसाथ मिलती है, तो एक धारा का निर्माण होता है। जब जीवन उस ओर बहना चाहता है, जिस ओर कभी नहीं बहा, तो मुझे तुम दिखाई देते हो। तुम्हारा शून्य होना ही एक धारा में बह जाना है। जब विचलित कर देने वाली धाराएं जीवन को अवरूद्ध नहीं करती, जब चक्रवात मेरे आत्मबल को नहीं तोडते। तब जीवन सरल हो जाता है, और मैं तुम्हारी शून्यता में तुम्हारे साथ बह चलती हूं।

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जब पेड़ों पर नई कोंपले जन्म लेती है, जब बसन्त ऋतु का आगमन होता है, तब तुम एक नई उमंग बनकर मुझे आनंदित करते हो। तुम्हारी शून्यता को प्रकृति के हर रूप में महसूस करके तुम्हें अपने श्वास के जरिए खुद में समाहित कर लेती हूं। मेरी बन्द आंखों के अंधकार में, मेरे मस्तक के बीच एक प्रकाश की तरह तुम एक दिव्य ज्योति बन जाते हो। जब  संगीत की किसी धुन में तुम बांसुरी का राग बनकर घुल जाते हो, तै महसूस करती हूं तुम शून्य होकर भी सबकुछ हो। जैसे एक शून्य किसी भी नंबर की महत्ता को हजारों लाखों गुना बढ़ा सकती है, वैसे ही तुम मेरी आत्मा की महत्ता को बढ़ा देते हो।

जैसे नंबर के बिना शून्य बस शून्य है, वैसे ही मेरे बिना तुम और तुम्हारे बिना मैं बस एक नंबर बनकर रह जाती हूं। जैसे एक दर्पण में एक व्यक्ति के कई प्रतिबिंब हो सकते है, वैसे ही मैं तुम्हारा प्रतिबिंब हूं।


जब तुम्हारी खामोशी मेरे अल्फाजों को अपने आगोश में ले लेती है,तो तुम्हारी शून्यता को महसूस करती हूं। जैसे एक शून्य आकार में गोल होती है, तुमसे मिलकर मैं भी खुद को विकारों के कोणों से दूर गोल ही पाती। जैसे मेरे जीवन की धारा उस गोल एरिया में घूम कर आत्म केन्द्रित हो जाती है। और अपने मन की गहराई में मैं तुम्हारी शून्यता को महसूस करती हूं। बंद आंखों से मेरा तीसरा नेत्र खुल जाता है। मेरा होना तुम्हारा होना है, तुम्हारा शून्य होना मेरी चेतना को जगाना है।

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जब जीवन के कुछ कठिन क्षणों में, मेरे और तुम्हारे जीवन की धाराएं टकराना चाहतीं हैं, जब तुम्हारी जिद और कठोरता के आगे मेरी सरलता छोटी पड़ जाती है, तब मैं तुम्हारी शून्यता को महसूस करती हूं। मैं तुम्हारी धारा में बहकर चुपचाप अविरल तुम्हारे साथ बह जाती हूं, क्योंकि तुम और मैं हमेशा से एक थे और आगे भी एक ही होंगे।

तुम्हारा शून्य होना, मुझे हमेशा ये एहसास कराता है कि, सबकुछ पाने की चाह हमें अशांत और बैचैन बनातीं है। शून्य होकर कभी खुद को तलाशना ही जीवन है। भौतिक सुखों के साथ बिना आत्मिक शांति के जीवन मूल्यहीन है। इसलिए तुम्हारा शून्य हो जाना मेरा भी शून्य हो जाना है, क्योंकि तुम तो तुम हो ही, मैं भी तो तुम हूं।

मैं भी तो तुम हूं, मैं भी तो तुम हूं।

तुम न हो तो फिर मैं कहां ?


❤️Zla India आपके दिल की आवाज, मेरे अल्फ़ाज़ और आपके एहसास ❤️

Alfaz aur khamoshi ke beech bikhre ehsaso ko kalambadh krne ki ek choti si koshish krti hun,Taki kisi gamgeen chehre pe muskan de skun.Ek shayar ki nazar se aapke dil ki aawaz,aur zindgi se smete huye ko aap tak pahuchane ka junun bs yahi jo aksar mujhe likhne ke liye majboor kr deta h.....

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