बड़ा कौन इन्सान या इंसानियत

बड़ा कौन?इन्सान या इंसानियत



           ये मेरे व्यक्तिगत विचार है, जिनका मकसद किसी की भावनाओं को ठेस पंहुचाना नहीं है| मेरी एक छोटी सी कोशिश कि मैं अगर किसी एक व्यक्ति की भी सोच में, उसकी जिंदगी में इस आर्टिकल से अगर थोडा सा भी बदलाव ला पाई तो मुझे बहुत ख़ुशी होगी और इस आर्टिकल को लिखने का मेरा उद्देश्य पूर्ण होगा|


मानवता के लिए सोचे


      मानव भगवान की सबसे श्रेष्ठ रचना, जिसे उसने अपने सभी प्राणियों में सबसे ज्यादा अधिकार दिए हैं या यूँ कहे कि अपने सभी जीवों के साथ कुछ भी करने का अधिकार दिया हैं|राजनीतिक भाषा में कहूँ तो वीटो शक्ति यानि विशेषाधिकार, लेकिन क्या हम इस विशेषाधिकार का सही प्रयोग कर रहे हैं या नहीं? यही सबसे बड़ा सवाल जो मेरे ज़ेहन पर काबिज़ है| बड़ा कौन है? हम इन्सान या हमारी इंसानियत,जिसके बूते हम इन्सान कहलाने के लायक हैं| विनम्रता, सज्जनता, परोपकार दयालुता और प्रेम ये सभी गुण इंसानियत के गुण माने जाते हैं,जिससे हम इन्सान कहलाते हैं, लेकिन आज सभ्य समाज का बहुत बड़ा हिस्सा,जो खुद को इन्सान कहता है, इंसानियत के उन्ही गुणों को कहीं खोता सा जा रहा है|



            प्रेम सिमटकर आपसी प्रेम तक सीमित हो गया है जबकि प्रेम का सम्पूर्ण अर्थ हर उस जीव से प्रेम से जो इस प्रकृति में मौजूद है| दयालुता के नाम पर किसी भिखारी को भीख दे देना या फिर किसी की मदद कर देना तक सीमित कर दिया है| इंसानियत का हर गुण आज स्वार्थ के नीचे दबकर अपना असली रूप खो रहा है। आज अपने स्वार्थ के लिए,हम ना जाने कितने पशु-पक्षियों को मार रहे हैं| भगवान अपने बनाये हर प्राणी से प्रेम करता है, माना कि इन्सान से उसे सबसे ज्यादा प्यार है लेकिन उसने इन्सान को ये अधिकार कभी नहीं दिया, की वो उसके ही बनाये दूसरे जीवों की अपना पेट भरने के लिए या अपने स्वार्थ के लिए हत्या कर दे| उसने प्रकृति में हम इंसानों के लिए ना जाने कितने प्रकार की वनस्पतियाँ बनायी है, अगर हर रोज एक नयी वनस्पति भी खायी जाए तो,खत्म नही होगी| प्रकृति में रहने वाले कोई भी जीव अपना गुणधर्म नही छोड़ता है,सिवाय इन्सान के| तो फिर इन्सान ही क्यों अपने गुणधर्म को छोड़ता है,वो तो इस पृथ्वी की श्रेष्ठ रचना है|                   




       मुझे एक छोटी सी कहानी याद आ गयी, जो इस बात को साबित करती है कि इंसान के लिए आज उसका अंहकार, उसकी झूठी शान और उसका स्वार्थ सर्वोपरि है| इन सबके बीच पशु-पक्षियों के बीच आज भी उनके गुणधर्म बाकी है| एक मोहल्ल्ले में एक गरीब महिला रहती थी| जिसका एक छोटा सा बेटा, जिसकी आयु एक वर्ष और शराबी पति था|उसका पति कुछ नहीं करता था| एक दिन बारिश हो रही थी| महिला काम पर नहीं जा सकी, कुछ कमाई नहीं हुई| पति दिन भर घर के बाहर ही आवारा घूमता रहा| शाम होते-होते जब घर में कुछ बनाने की बारी आई तो कुछ नहीं था| औरत का बच्चा भूखा था, ऊपर से कुछ ना खाने की वजह से वो बच्चे को अपना दूध भी नहीं पिला पाई| शाम तक आते-आते बच्चा दूध के लिए बिलख उठा था| बारिश भी रुकने का नाम नहीं ले रही थी| पिछले कई दिनों में पड़ोसियों के घर से भी वो औरत कई बार दूध मांग चुकी थी| इसलिए हिम्मत नहीं हो रही थी फिर से मांगने की, लेकिन बच्चे को बिलखता देख औरत से रहा ना गया और बच्चे को घर छोड़कर बारिश में ही एक उम्मीद के साथ फिर से पड़ोसियों के घर चली गई, लेकिन किसी ने उसे दूध नहीं दिया| जब रोते हुए वो वापस आई तो उसे बच्चे के किलकारियों की आवाज़ नहीं आई,जिस कारण वो डर गई और घर में बच्चे को इधर-उधर ढूढ़ने लगी|





      एक कोने में देखा तो वो चकित रह गई| वो कुतिया जिसे वो हर रोज बची हुई रोटी से टुकड़ा दे देती थी, वो अपने छोटे-छोटे पिल्लो को दूध पिला रही थी और साथ में उस बच्चे को भी| मैंने जब ये कहानी पढ़ी तो मेरी आँखों में आंसू आ गये थे| प्रकृति के हर जीव के अन्दर प्रेम और दया बाकि है जबकि हम इंसानों ने प्रेम और दया को भी अपने स्वार्थ में ढाल लिया है| हम ना जाने कितने चूजों को खा लेते हैं सिर्फ अपनी भूख मिटाने के लिए, बिना ये सोचे कि इसे भगवान ने जीवन दिया है| हम होते कौन हैं किसी के जीवन का अधिकार छिनने वाले? एक बार ये सोचे कि कोई हमारे नवजात शिशु को मारने लगे सिर्फ अपनी भूख मिटने के लिए तो क्या सह पायेंगें| लेकिन हम ये बिना सोचे हर रोज भोजन में ना जाने कितनी माँओं के बच्चों को खा जाते है| अक्सर ये सवाल मेरे जेहन ने आता है कि बड़ा कौन, इन्सान या इंसानियत? बड़ा कौन है, हम इंसानों का स्वार्थ, भूख, प्यास, स्वाद या फिर वो गुण जिसके कारण हमें इन्सान कह जाता है|





      ये हम इंसानों की सोच ही है जो कहती है कि अगर ये ना खाया तो मैं रह नहीं पाऊंगा| अगर एक बार दूसरे तरीके से सोचा जाए कि मैं दिन में दो अंडें खाता हूँ यानि दो जीव तो एक महीने में साठ जीव, एक साल में सात सौ तीस जीव, अगर मैं इसी तरह इन जीवों को चंद मिनटों का अपनी जीभ का स्वाद ना बनाकर बचाऊं तो अपनी पूरी जिंदगी में कितने जीव बचा सकता हूँ और उनकी दुआएं ले सकता हूँ| अक्सर मैंने लोगो को कहते सुना है कि फला दिन व्रत करना है तो अब नॉनवेज नहीं खाना या अब नवरात्र के व्रत चल रहे हैं, अब नॉनवेज मत खाना| भगवान के सामने नॉनवेज खाकर जाने से लोग कतराते हैं| भगवान मंदिर में नहीं बैठा है जो जाते ही तुम्हे पकड़ लेगा कि नॉनवेज क्यों खाया? भगवान को तो तुम खा चुके हो, उसके एक अंश को| अगर वो मंदिर में बैठा होता तो सबसे ज्यादा जूते मंदिर के सामने से चोरी ना होते और दूसरी बात भगवान से कहाँ-कहाँ तक झूठ बोलोगे? पूरी जिंदगी जब नॉनवेज खाकर उसके सामने हाजिर होओगे तब कैसे बचोगे? अगर इतना ही डर है उस भगवान का या इतना ही प्यार है उससे तो उसके दिए गुणों को क्यों छोड़ रहे हो? उसकी बनायीं चीजों के साथ क्यों छेड़खानी कर रहे हो?





         भगवान ने प्रकृति में हर चीज संतुलन के लिए बनाई है और हम इंसानों की जरुरत का ख़ास ख्याल रखा है| ठंडक के लिए हवा बनाई है| गर्माहट के लिए धूप बनाई है| छाया के लिए पेड़ बनाया है| यहाँ तक कि इस बात का भी ख्याल रखा है कि गर्मी में ठंडा पानी चाहिए तो जमीन से ठंडा पानी निकलता है और सर्दी में गर्म पानी चाहिए तो जमीन से गर्म पानी निकलता है| पेट भरने के लिए अलग-अलग तरह की वनस्पतियाँ बनाई है| हर बीमारी का इलाज वनस्पतियों में दिया है और उसका मानव को दिया गया सबसे बड़ा उपहार बुद्धि है  जिससे भगवान के बनाए किसी भी जीव को हम अपनी जरूरत के अनुसार इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन उसने ये अधिकार किसी भी अन्य जीव को नहीं दिया कि हम उसके अनुसार काम करें| मानव को उसने स्वतंत्र बनाया है और बाकि सभी जीवों को मानव के अधीन किया है लेकिन इतना फर्ज तो हमारा भी बनता है कि उसने जो जिम्मेदारी हमे सौंपी उसका हम सही इस्तेमाल करें, उसका दुरूपयोग ना करें या फिर जो हमारे अधीन है, जिसकी जीवनरेखा हमारे हाथ में है, उसे अपनी जरूरत में इस्तेमाल भले ही कर ले,लेकिन उसके जीवन को समाप्त ना करें क्योंकि बड़ा इन्सान नहीं उसकी इंसानियत है| 




      

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Alfaz aur khamoshi ke beech bikhre ehsaso ko kalambadh krne ki ek choti si koshish krti hun,Taki kisi gamgeen chehre pe muskan de skun.Ek shayar ki nazar se aapke dil ki aawaz,aur zindgi se smete huye ko aap tak pahuchane ka junun bs yahi jo aksar mujhe likhne ke liye majboor kr deta h.....

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