बंधन सिर्फ वहाँ टूटते है जहाँ द्वैत का भाव मिट जाता है।"
मुझे खबर है तुम ऊँचाईयों पर खड़े हो,
और ढलान मेरी तरफ है।
जो कुछ भी तुम्हारी तरफ से आयेगा, मुझे स्वीकृत है।
तुम्हारी ऊँचाईयाँ बढ रही है और मेरी गहराईयाँ।
अजीब इत्तेफाक है जिन्दगी का।
तुम सबसे करीब हो मेरे और ये दूरी भी हर दिन बढती ही जा रही है।
हर दिन तुम्हारा कद और ऊँचा बढते देखना चाहती हूँ,
मुझे परवाह नहीं है इन गहराईयों के बढ जाने की।
मुझे परवाह नहीं है ये दूरी ओर बढ जाने की।
क्योंकि मुझको खबर है कि ढलान मेरी तरफ है।
तुम्हारी तरफ से जो भी आयेगा, वो मुझमें ही समायेगा।
क्योंकि मुझको पता है कि गहराई और ऊँचाई में हमेशा एक खिंचाव होता है।
क्योंकि मुझको खबर है कि तुम तो तुम हो ही,
मैं भी बस तुम ही हूँ।
क्योंकि ये जहान जानता है कि हर चीज़ तुम्हें छूने के बाद मुझ तक पहुंचती है।
तुम्हारा दिया सबकुछ आज तक मेरे पास सुरक्षित है और हमेशा रहेगा।
ये आँसू भी तुम्हारे ये मुस्कान भी तुम्हारी।
मेरा क्या है मेरे पास, मैं खुद भी बस तुम्हारी।
ये द्वैत का भाव जाने कब का मिट चुका है।
अब अगर कुछ बाकी है तो वो हो बस तुम,
बस तुम, बस तुम ओर कुछ भी नहीं।
मुझे खबर है तुम ऊँचाईयों पर खड़े हो,
और ढलान मेरी तरफ है।
जो कुछ भी तुम्हारी तरफ से आयेगा
तुम्हारी ऊँचाईयाँ बढ रही है और मेरी गहराईयाँ।
अजीब इत्तेफाक है जिन्दगी का।
तुम सबसे करीब हो मेरे और ये दूरी भी हर दिन बढती ही जा रही है।
हर दिन तुम्हारा कद और ऊँचा बढते देखना चाहती हूँ,
मुझे परवाह नहीं है इन गहराईयों के बढ जाने की।
मुझे परवाह नहीं है ये दूरी ओर बढ जाने की।
क्योंकि मुझको खबर है कि ढलान मेरी तरफ है।
तुम्हारी तरफ से जो भी आयेगा, वो मुझमें ही समायेगा।
क्योंकि मुझको पता है कि गहराई और ऊँचाई में हमेशा एक खिंचाव होता है।
क्योंकि मुझको खबर है कि तुम तो तुम हो ही,
मैं भी बस तुम ही हूँ।
क्योंकि ये जहान जानता है कि हर चीज़ तुम्हें छूने के बाद मुझ तक पहुंचती है।
तुम्हारा दिया सबकुछ आज तक मेरे पास सुरक्षित है और हमेशा रहेगा।
ये आँसू भी तुम्हारे ये मुस्कान भी तुम्हारी।
मेरा क्या है मेरे पास, मैं खुद भी बस तुम्हारी।
ये द्वैत का भाव जाने कब का मिट चुका है।
अब अगर कुछ बाकी है तो वो हो बस तुम,
बस तुम, बस तुम ओर कुछ भी नहीं।
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