प्रेम क्या है?

Personal  thoughts

prem ki paribhasha


"मौन की भी अपनी एक भाषा होती है,जब हम मौन हो तो अपने आपको सबसे ज्यादा सुनते है।
बहुत वर्ष पहले एक प्रश्न का उत्तर ढूँढना चाहा था,प्रेम क्या है??
वर्षों तक ढूँढा लेकिन सही जवाब नहीं मिल पाया।प्रेम क्या है,क्यों है?
फिर प्रश्न का उत्तर जानने के लिए ओशो की एक पूरी किताब पढ डाली।प्रेम क्या है??
                                                                     


कुछ कुछ प्रेम का अर्थ समझ आया,लेकिन फिर भी जिस चीज़ की तलाश थी,वो अधूरा ही रहा।
शायद वो अनुभव था,क्योंकि प्रेम किसी ग्रंथ में लिखा कोई शास्त्र नहीं जिसको किताबें पढने से समझा जा सके।


ओशो कहते है प्रेम एक यथार्थ है,शाश्वत है जिसने प्रेम को समझ लिया,उसे बाकी कुछ भी समझने की जरूरत नहीं। बुद्धिमान लोग सबसे बड़े बुद्धू होते है क्योंकि उनको पता ही नहीं होता कि वो कितनी बड़ी सम्पदा गवाँ बैठे है।
कूड़ा -करकट तो इकट्ठा कर लेते है -धन-सम्पदा,पद-प्रतिष्ठा और जीवन की जोअसली सम्पदा है,जो शाश्वत है उससे वंचित रह जाते है।प्रेम के अतिरिक्त और कुछ भी शाश्वत नहीं है।शेष सब क्षणभंगुर है,बस यूँ है जैसे इन्द्रधनुष दिखायी तो पडता है बहुत रंगीन,दिखाई देता है बड़ा लेकिन वहाँ कुछ भी नहीं।
मुट्ठी बांधोगे तो हाथ कुछ भी न लगेगा।
ऐसे ही हमारे धन-सम्पदा,पद-प्रतिष्ठा है और इनके पीछे चलने वाली दौड़ क्षणभंगुर है,पानी के बुलबुलों जैसी।बुद्धिमान उसी में अटका रह जाता है।वह रूपये ही गिनता रहता है और गिनते गिनते ही मर जाता है।कुछ नहीं जान पाता।
प्रेम संसार की समझ में नहीं आ सकता,आ जाए तो संसार स्वर्ग न हो जाए!
संसार की समझ में घृणा आ जाती है,प्रेम नहीं आता;युद्ध आ जाता है,शांति नहीं आती;विज्ञान आ जाता है,धर्म नहीं आता।
जो बाहर है उसे तो समझ लेता है,लेकिन जो भीतर है और असली है,जो प्राणों का प्राण है वह संसार की पकड से छूट जाता है।संसार तो दृश्य पर अटका होता है।प्रेम की आँख अदृश्य को देखने लगती है।
प्रेम तुम्हारे भीतर एक तीसरी आँख को खोल देता है।




ओशो को पढकर लगा,प्रेम सच में सत्य नाम की कोई वस्तु है,जो इस संसार में मौजूद है।लेकिन प्रेम क्यों है?इस प्रश्न का उत्तर अधूरा ही रहा,हर जगह इस प्रश्न का जवाब तलाशना चाहा,लेकिन कभी अपने अंदर तलाशने की कोशिश नहीं की।प्रेम आखिर क्यों है और प्रेम क्या है?


वाणी की भाषा को हमेशा बहुत इतमीनान से सुना,कभी अनुभव ही नहीं किया,मौन की भी अपनी भाषा होती है।जिसको समझने के लिए मौन होना पडता है।
मौन बढ़ा तो जीवन के उन उलझे सवालों के जवाब समझ आने लगे,जो वर्षों से मस्तिष्क पटल पर कुछ धुंधले से पडने लगे थे,
प्रेम की परिभाषा किताबों में नहीं लिखी और अगर लिखी भी है तो उन्होंने अपने अनुभव से लिखी है,जिसका हमारे लिए कोई महत्व नहीं,क्योंकि हमारे लिए वो कागज पर लिखे काले अक्षरों से ज्यादा कुछ नहीं।
प्रेम अनुभव का विषय है,जिसने इसे जाना बस उसने जाना,दूसरा कोई उसके अनुभव से नहीं जान सकता कि प्रेम क्या है और क्यों है??




मौन बढ़ा तो मेरे  अंदर उठने वाले उस सवाल का जवाब समझ आने लगा,जीवन के कुछ अनुभव स्मृतियो में उतरने लगे।
मन की निर्मलता बढने लगी और मुझे समझ आने लगा,प्रेम क्या है?क्यों है??
कब तक के लिए है??
अनुभव सच्चा अध्यापक है,जिस बात को सीखने में वर्षों गुजर जाते है,अनुभव एक पल में सीखा देता है और उससे भी गहरा विषय है मौन,जो आपके अनुभव को स्मृति पटल पर लाने लगता है।
इसलिए प्रेम को समझने के लिए सबसे पहला कदम मौन की तरफ होगा,जो आपको अपने जीवन के हर अनकहे सवालों का जवाब देने के लिए तैयार करेगा।


मेरे जीवन का कुछ अनुभव,जिससे आपको प्रेम क्या है?
इस सवाल को समझने में बिल्कुल मदद नहीं करेगा,क्योंकि प्रेम सिर्फ अन्तरआत्मा में होता है,उसे शब्दों से पढकर जीवन में उतारना बहुत मुश्किल है।
लेकिन मेरे अनुभव से आपके अंदर इतनी जिज्ञासा जरूर बढेगी कि प्रेम वास्तव में क्या है??
इसको अनुभव करके देखना चाहिए।
मेरा अनुभव आपके अंदर की उसी जिज्ञासा को मौन की तरफ ले जायेगा,जहाँ आपको अपने सभी अनसुलझे सवालों के जवाब मिल जायेंगे।
सिर्फ प्रेम ही नहीं,जीवन के बहुत सारे रहस्य जो हमारी आँखों के सामने होते हुए भी दिखाई नहीं देते।




अभी हमारा प्रश्न था कि प्रेम क्या है?
मैं अपने अनुभव की बात करूँ,तो प्रेम वो है जहाँ द्वैत का भाव मिट जाता है,जहाँ कोई दो वस्तुओं का अस्तित्व एक हो जाता है।
प्रेम सिर्फ मनुष्य तक सिमटी हुयी एक वस्तु नहीं,अपितु एक व्यापक चीज़ है जो इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड में मौजूद है लेकिन फिर भी कभी दिखाई नहीं देती। पशु-पक्षी,पेड-पौधे,इस ब्रह्मांड के सब प्राणी इस प्रेम में जकडे हुए है,जिसे कई बार हम बंधन समझ लेते है,लेकिन प्रेम बंधन नहीं है,क्योंकि बंधन वो होता है जो हमें बाँधता है,लेकिन प्रेम हमें मुक्त करने के लिए है।
                                                                     
प्रेम की परिभाषा

परस्पर दो एकसमान गुणधर्म वाली वस्तुओं का एक -दूसरे की तरफ आकर्षित होना,जहाँ उन दोनों के मिल जाने पर कम प्रभाव वाली वस्तु का दूसरी में विलयीकरण हो जाता है,वही प्रेम है जिसमें एक ने दूसरे में अपने अस्तित्व को खो दिया,जहाँ वो दोनों हमेशा के लिए एक हो गयी,जिनको अब कोई अलग नहीं कर सकता।अगर करना चाहें तो उनका अस्तित्व हमेशा के लिए मिट जाता है।
आँख और रोशनी में भी प्रेम है,रोशनी दूर होते ही आँख अंधेरे में बंद हो जाती है।सूर्य के बिना रात में इन आँखों को मजबूरन सोना पडता है,क्योंकि रोशनी के बिना आँखों का अस्तित्व नहीं।सूर्य के बिना हम देख नहीं सकते।
आँख और सूर्य में समान गुणधर्म है रोशनी का।एक के अस्तित्व से दूसरा चल रहा है।
इसलिए ये प्रेम कभी कम नहीं हो सकता,ये प्रेम कभी मिट नहीं सकता,क्योंकि जो मिट जाए जो जुदा होने के बाद भी अपना अस्तित्व ना खोये वहाँ प्रेम हो ही नहीं सकता।




मनुष्य की बात करूँ,तो आम लोगों की भाषा में शादी कर लेना,गर्लफ्रेंड बना लेना,यही प्रेम है।
शरीर से एक कदम आगे बढकर प्रेम को जानने की हमने कोशिश ही नहीं।
आजकल सोशल मीडिया पर हर कहानी शुरू होती है और एक दूसरे को ब्लॉक करने के बाद खत्म हो जाती है।
हमने अनुभव लेना ही नहीं चाहा,प्रेम क्या है?हम मौन की भाषा को सुनना नहीं चाहते।
एक दूसरे को ब्लॉक करने के बाद हमारे अस्तित्व फिर से अलग -अलग हो जाते है।
प्रेम में मिटने के बाद भी हम जीवित बच जाते है।
प्रेम की पहली परिभाषा एक दूसरे को देखने से शुरू होती है,हम भूल जाते है कि ये शरीर स्थूल है,आज जो दिखाई दे रहा है कल वो नहीं होगा।
प्रेम में एक -दूसरे के गुणधर्म तलाशना हमने छोड़ दिया है।
हम भूल गए है कि प्रेम दो समान गुणधर्म वाली चीजों में होता है,जैसे चुम्बक दूसरी चुम्बक को आकर्षित करती है,जैसे कोई वस्तु उपर उछालने पर गुरुत्वाकर्षण के कारण नीचे की तरफ आती है,उसी तरह ये जीव,ये आत्मा उसी तरफ आकर्षित होता है जिस तरफ उसे समान गुणधर्म दिखाई पडते है।
यही सत्य है,यही शाश्वत है यही प्रेम है।
यही प्रेम का वो बंधन है जो इस मनुष्य को मुक्त करता है।यही वो प्रेम है जिसके बारे में कबीरदास ने कहा है -ढाई आखर प्रेम का पढे सो पंडित होय।




ये वो प्रेम होता है जो कभी समाप्त नहीं होता।चाहे सदियाँ गुजर जाये एक -दूसरे से इस जिस्म से दूर हुए,लेकिन ये अस्तित्व कभी अलग नहीं हो सकता ,चाहे सदियाँ गुजर जाये एक -दूसरे से बात किये बिना,मौन इस प्रेम की भाषा होती है,जिसमें कभी वाणी से बोलने की जरूरत महसूस नहीं होती।क्योंकि प्रेम खोखला नहीं,एक यथार्थ एहसास है,जिसे सिर्फ वो महसूस कर सकता है जिसने इसके अस्तित्व में खुद को मिटाकर देखा है।तमाशबीन कभी उस एहसास को महसूस नहीं कर सकते जो उन्होंने दूसरों से सुना है।
जैसे चातक सिर्फ स्वाति नक्षत्र का पानी पीता है,उसका प्रेम युग प्रसिद्ध है,वो स्वाति नक्षत्र के पानी के बिना इस जिस्म को छोड़ना पसंद करता है,वैसे ही सच्चा प्रेम इस जिस्म की बंदिशों से कहीं बहुत दूर है।




पेड की डाली से टूटा एक पत्ता,उस प्रेम का एक जीता जागता उदाहरण है।जहाँ पेड़ और पत्ते दोनों के एक जैसे गुणधर्म होते है।पेड़ से अलग हो पत्ता अपना अस्तित्व खो देता है।आपने देखा होगा,जिस पेड़ से कोई पत्ता टूटता है,वहाँ कभी दूसरा पत्ता नहीं आता,और उस पेड़ से पत्ता टूटने पर उसकी डालीं से निकलने वाला पानी इस प्रेम का प्रतीक है।
उस पेड़ पर उस जैसे ही ना जाने कितने पत्ते आ जाते है,और वो पत्ते उस पेड़ से अलग होते ही अपना अस्तित्व त्याग देते है,लेकिन पेड़ अपना अस्तित्व नहीं छोडता,किन्तु उस पत्ते की जगह उस पेड के जीवनकाल में कभी दूसरा पत्ता नहीं आता।
वो पत्ता कम प्रभाव वाली वस्तु है और वो पेड़ ज्यादा प्रभाव वाली वस्तु है जिनके गुणधर्म समान है,जिसमें अधिक प्रभाव वाली वस्तु में कम प्रभाव वाली वस्तु ने अपना अस्तित्व त्याग दिया है और इस प्रेम को हमेशा के लिए पूर्ण कर दिया है।
अब कोई उस पत्ते को पेड़ से अलग नहीं कर सकता क्योंकि उसने खुद को प्रेम में हमेशा के लिए खो दिया है।
यही वास्तविक अर्थों में प्रेम है,जहाँ मनुष्य अलग होकर भी कभी अलग नहीं होता।
जहाँ एक बार अपना अस्तित्व मिटा देने के बाद कभी दो अस्तित्व नहीं हो सकते।इसमें द्वैत का भाव मिट जाता है।
जो इस आत्मा के परमात्मा में मिलन जितना पवित्र है।




यही मेरा प्रेम अनुभव है,मौन जिसकी भाषा है और जिसमें डूबकर दोबारा इस सांसारिक प्रेम में डूबने का दिल नहीं करता।
हिन्दी मूवी का एक सॅान्ग इसी प्रेम को बयाँ करता -


"कि तुम खत्म हुए जहां,मैं शुरू हुआ।
कुर्बान हुआ .................."


दो अस्तित्व का सिमटकर एक हो जाना ही प्रेम है,जो हमेशा इस ब्रह्मांड में रहेगा।मनुष्य का अस्तित्व भले समाप्त हो जाये,लेकिन प्रेम कभी समाप्त नहीं होगा।


💕💕 Zla India आपके दिल की आवाज।जुड़े रहिये कहानियों और कविताओं के साथ जिनके नायक होंगे आप।कुछ एहसास जो छू ले दिल को ........💕 💕







Alfaz aur khamoshi ke beech bikhre ehsaso ko kalambadh krne ki ek choti si koshish krti hun,Taki kisi gamgeen chehre pe muskan de skun.Ek shayar ki nazar se aapke dil ki aawaz,aur zindgi se smete huye ko aap tak pahuchane ka junun bs yahi jo aksar mujhe likhne ke liye majboor kr deta h.....

Share this

Related Posts

Previous
Next Post »