Best Heart touching poem
"जिस्म की परत से कहीं दूर,आत्मा के पथ पर प्रेम की मंजिल लिए जब मैं निकलती हूँ।
तब तुम साथ नहीं होते हो,फिर भी हाथ थामें किसी हमराही की तरह साथ चलते हो।"
"बन्द आँखों के घनघोर अंधेरो में,तुम अंतर्मन की रोशनी जलाए हुए,किसी दीप के जैसे जलते हो।
मैं अकेलेपन के सन्नाटे में,दुनिया से कहीं कोसों दूर
इस जिस्म की बंदिशों से कहीं कोसों दूर अपनी आँखों में तुम्हारी आँखें महसूस करती हूँ,
अपने होठों में तुम्हारे होंठ महसूस करती हूँ।
आत्मा के इस पथ पर जब मंजिल की तरफ जाती हूं,तो
तुम हाथ थाम साथ चले थे,और वापस जब लौटती हूँ
तो तुम्हें अपने आपमें लिए अकेली।
तुम घुल जाते हो मुझमें कहीं,तुम्हारे हाथों को अपने हाथों में महसूस करती हूँ।"
"प्रेम की इस मंजिल को तलाशते हुए,रूह के इस पथ पर
तुम्हें ढूंढते हुए कुछ दूर तक जाती हूं
और तुमसे खुद में मिलने के बाद फिर वापस लौट आती हूँ।
अधूरा कहाँ रह पाता है कुछ कभी।
सबकुछ तो पूर्ण होता है इस आँखों के घनघोर अँधेरे में।
तुम्हारी आँखें देखते देखते मुझमें समा जाती है,
ना अल्फाजो की बंदिशें होती है,ना जिस्म की ख्वाहिशें।
होती है तो बस एक तंद्रा,जहाँ पूर्ण होती हूँ मैं,
जहाँ पूर्ण होता है ये जहाँ।
बस अधूरा कुछ होता है तो इस जिस्म में फिर से लौट आने की मजबूरी।
तुममें एक होकर भी तुमसे अलग होने की मजबूरी।
आत्मा के उस पथ से वापस जिस्म की परत में लौट आने। की मजबूरी।
💕💕 Zla India -आपके दिल की आवाज,जुड़े रहिये कहानियों और कविताओं के साथ,जिनके नायक होंगे आप।कुछ एहसास जो छू ले दिल को ..........💕 💕
"जिस्म की परत से कहीं दूर,आत्मा के पथ पर प्रेम की मंजिल लिए जब मैं निकलती हूँ।
तब तुम साथ नहीं होते हो,फिर भी हाथ थामें किसी हमराही की तरह साथ चलते हो।"
"बन्द आँखों के घनघोर अंधेरो में,तुम अंतर्मन की रोशनी जलाए हुए,किसी दीप के जैसे जलते हो।
मैं अकेलेपन के सन्नाटे में,दुनिया से कहीं कोसों दूर
इस जिस्म की बंदिशों से कहीं कोसों दूर अपनी आँखों में तुम्हारी आँखें महसूस करती हूँ,
अपने होठों में तुम्हारे होंठ महसूस करती हूँ।
आत्मा के इस पथ पर जब मंजिल की तरफ जाती हूं,तो
तुम हाथ थाम साथ चले थे,और वापस जब लौटती हूँ
तो तुम्हें अपने आपमें लिए अकेली।
तुम घुल जाते हो मुझमें कहीं,तुम्हारे हाथों को अपने हाथों में महसूस करती हूँ।"
"प्रेम की इस मंजिल को तलाशते हुए,रूह के इस पथ पर
तुम्हें ढूंढते हुए कुछ दूर तक जाती हूं
और तुमसे खुद में मिलने के बाद फिर वापस लौट आती हूँ।
अधूरा कहाँ रह पाता है कुछ कभी।
सबकुछ तो पूर्ण होता है इस आँखों के घनघोर अँधेरे में।
तुम्हारी आँखें देखते देखते मुझमें समा जाती है,
ना अल्फाजो की बंदिशें होती है,ना जिस्म की ख्वाहिशें।
होती है तो बस एक तंद्रा,जहाँ पूर्ण होती हूँ मैं,
जहाँ पूर्ण होता है ये जहाँ।
बस अधूरा कुछ होता है तो इस जिस्म में फिर से लौट आने की मजबूरी।
तुममें एक होकर भी तुमसे अलग होने की मजबूरी।
आत्मा के उस पथ से वापस जिस्म की परत में लौट आने। की मजबूरी।
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